बघेलखंड स्पेशल

बघेली भाषा में एक सुन्दर सोच, जिसको जरूर पढ़ना और सोचना चाहिए?

बघेली रचना और कवि की भावना

गयिलि बघेली रचना – लेखक और कवि दिनकर प्रसाद पाण्डेय ‘दिनकर’

एक दुइ नहीं हजारन है गयिलियां
ठीहा बोलावथै फैलाये बहियाँ
काहे झांकी है मन म कुलकुतिया।।
का हेरथी तोहारि निहुरी नजरिया।।

ये हो रात के चलयिया कुछ त बोला।।
काहे अनबुझझ बने ह मुंह त खोला।।

मतलब है जीवन मसनंद जिया
अमृत होइ चहयि जहर, ई घूंट पिया
तोहार सफलता मजा मौज म भिड़ि जाय
त सीखि जाबे हिम्मत से जिययि केर उपाय

ए हो रात के चलयिया कुछ त बोला
काहे अनबुझझ बने ह मुंह त खौला।।

दुनिया त मतलबी है काहे बिचारा
कांटा खुढढी परी रहै दे आगे कयि निहारा
आंधी बौखर आवति रही है अउतै रही
आगे आगे चला हो दिनकर, आगे अरचन अउबै करिहीं।।

ए हो राति के चलयिया कुछ त बोला।
काहे तू अनबुझझ बने हैं मुंह त खोला।।

ई रचना जरूर पढ़ी धन्यवाद

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