
लेखन और कवि – दिनकर प्रसाद पाण्डेय
जीवन केरि सुधि सरेख
आमिल गुरुतुल होत हयि, जिउ बहलावनि होत
जिययि केर रस्ता अड़गड़ बड़गड़, काटा पथरा होत।।
काटा पथरा होत है, घाव बड़े हैं घायल
मंजिल जयिसयि मनका मनका अढ़ुकन ठोकर कायल।।
जौने का सब दुनिया मरिगयि ठाढ़े नही मिली।
तबहूं मनकी मरी नहीं है, पाखें तबौ खिली।।
पांखे तबौ खिली, अनयिस मन ठीहा लुका,
मरहम पट्टी से घाउ पुरी तब, गुरुतुल मन झुका।।
सुधि गुरुतुल कयि होति हयि, अमिल ठडा होय
कबौ कबौ कड़ुआ भे दिनकर, पुनि पुनी मलहम लोय।।
इआ जीवन केरि कड़वी सच्चाई आइ। आगे जे पढ़ी अउ गुनी उहै आगे बढ़ी।
धन्यवाद