भोपाल के पत्रकारों का संघर्ष और ‘गुड गवर्नेंस’ का सच
भोपाल में पत्रकार कुलदीप सिंगोरिया की गिरफ्तारी
भोपाल में पत्रकार कुलदीप सिंगोरिया की गिरफ्तारी के बाद मध्य प्रदेश की राजनीति और पत्रकारिता जगत में भूचाल आ गया है।
जिस राज्य में लोकतंत्र की रक्षा के लिए प्रेस को चौथा स्तंभ माना जाता है, उसी राज्य में पत्रकारों को फर्जी मामलों में फंसाकर जेल भेजा जा रहा है।
और जब इस अन्याय के खिलाफ पत्रकार एकजुट होकर सड़क पर उतरते हैं, तो सरकार का ‘गुड गवर्नेंस’ पुलिसिया दबाव और प्रशासनिक तानाशाही के रूप में सामने आता है।
यह मामला केवल कुलदीप सिंगोरिया की गिरफ्तारी का नहीं है, यह सवाल है कि मध्य प्रदेश में निष्पक्ष पत्रकारिता की कितनी स्वतंत्रता बची है❓️
सवाल यह भी है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरकार में पत्रकारों को सच्चाई उजागर करने की कीमत कबतक चुकानी पड़ेगी या फिर सत्ता के इशारों पर चलने वाले मीडिया को ही संरक्षण मिलेगा❓️
पत्रकारों का अपराध – सच्चाई उजागर करना
कुलदीप सिंगोरिया पिछले कुछ समय से IAS और IPS अधिकारियों के भ्रष्टाचार और काले कारनामों का खुलासा कर रहे थे।
पहले उन्हें मानसिक रूप से परेशान करने के लिए उनकी बहन को निशाना बनाया गया, फिर जब वे नहीं झुके तो एक झूठे एक्सीडेंट केस में गिरफ्तार कर लिया गया।
धाराएँ इतनी गंभीर लगा दी गईं जैसे कि वह कोई अपराधी या गैंगस्टर हों। पुलिस की इस कार्यवाही के खिलाफ भोपाल के पत्रकारों ने सड़क पर उतरकर कटारा हिल्स थाने में धरना दिया, जिससे सरकार और प्रशासन की पोल खुल गई।
माननीय मुख्यमंत्री के बर्थडे का ‘रिटर्न गिफ्ट’ – पत्रकारों की आवाज़ दबाने का प्रयास।
पत्रकारों की गिरफ्तारी और उन पर फर्जी मुकदमे दर्ज करने की यह घटना किसी इत्तेफाक का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह स्पष्ट संकेत है कि मध्य प्रदेश में स्वतंत्र पत्रकारिता पर हमला हो रहा है।
और क्या संयोग है कि यह सब ठीक उसी दिन होता है, जब मुख्यमंत्री मोहन यादव का जन्मदिन होता है❗️
यह पुलिस की ओर से उन्हें ‘रिटर्न गिफ्ट’ था— एक स्वतंत्र पत्रकार को जेल भेजकर सत्ता के खिलाफ उठने वाली आवाज़ को दबाने का प्रयास।
प्रधानमंत्री मोदी अक्सर कहते हैं— “एमपी अजब है, गजब है।”
और वाकई, यह प्रदेश अब इतना अजब और गजब हो गया है कि यहां पत्रकारों को सच लिखने की कीमत जेल की सलाखों के पीछे चुकानी पड़ रही है।
गुड गवर्नेंस या दमन की राजनीति❓️
मध्य प्रदेश में बीते कुछ महीनों में पत्रकारों को धमकाने, झूठे मुकदमों में फंसाने और खबरें हटवाने के कई मामले सामने आये हैं।
कई पत्रकारों को देर रात फोन करके धमकाया जाता है।
सत्ता के करीबी पत्रकारों को सुरक्षा मिलती है, और स्वतंत्र पत्रकारों को जेल की हवा खानी पड़ती है।
यह स्थिति आपातकाल जैसी लगती है, जब सरकार आलोचना सुनना पसंद नहीं करती और सत्ता के खिलाफ उठने वाली हर आवाज़ को दबा दिया जाता है।
पत्रकारों का संघर्ष केवल कुलदीप सिंगोरिया की रिहाई तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा का संघर्ष बन गया है।
मध्य प्रदेश का ‘ब्रांडेड’ और ‘इंडिपेंडेंट’ पत्रकारिता का अंतर
आज प्रदेश में पत्रकारिता दो हिस्सों में बंट चुकी है—
(1)->. ‘ब्रांडेड पत्रकारिता’ – जहां पत्रकार सरकार और प्रशासन के साथ ‘मैनेज’ रहते हैं, उनके गुण गाते हैं, सरकारी विज्ञापनों पर फलते-फूलते हैं, और जब कोई पत्रकार फंसता है, तो चुप्पी साध लेते हैं।
(2)->. ‘स्वतंत्र पत्रकारिता’ – जहां पत्रकार बिना किसी दबाव के सच्चाई उजागर करने का जोखिम उठाते हैं, फिर चाहे इसकी कीमत उन्हें धमकियों, मुकदमों या जेल जाने के रूप में ही क्यों न चुकानी पड़े।
आज भोपाल के पत्रकारों ने यह साबित कर दिया कि वे ‘ब्रांडेड पत्रकारिता’ के गुलाम नहीं हैं, बल्कि वे स्वतंत्र पत्रकारिता के सच्चे सिपाही हैं। कुलदीप सिंगोरिया की गिरफ्तारी के खिलाफ किया गया चक्काजाम इस बात का प्रमाण है कि सच्चाई को कैद नहीं किया जा सकता।
माननीय मुख्यमंत्री जी, पत्रकारों का विरोध सुनिये❗️
डॉ. मोहन यादव को सोचना चाहिये कि क्या वे मध्य प्रदेश को पत्रकारों के लिये खतरनाक राज्य बनाना चाहते हैं❓️
क्या वे चाहते हैं कि स्वतंत्र पत्रकारिता केवल इतिहास बनकर रह जाये❓️
अगर नहीं, तो उन्हें फौरन कुलदीप सिंगोरिया की रिहाई और सुनिश्चित करनी चाहिये और इस मामले में संलिप्त अधिकारियों पर कार्रवाई करनी चाहिये।
वरना, आने वाले समय में पत्रकारों की कलम एक और सवाल लिखेगी—
क्या मोहन के हृदय प्रदेश मध्य प्रदेश में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की स्याई लिखेगी लाल स…❓️
पत्रकार पर एफआईआर पर विरोध के बाद टीआई लाइन अटैच।
भोपाल के पत्रकार कुलदीप सिंघोरिया के द्वारा किये जा रहे अंदरूनी खुलासों से परेशान अफसरों ने एक झूठे एक्सीडेंट के मामले में एफआईआर दर्ज कर इनको कल गिरफ्तार कर लिया।
पत्रकार पर दबावपूर्ण तरीके से अंकुश लगाने की कोशिश पर कल रात हुई FIR और गिरफ्तारी की खबर पर भोपाल के पत्रकारों ने जमकर विरोध किया।
धरना प्रदर्शन से लेकर मुख्यमंत्री तक या मुद्दा उठाया गया।
आखिरकार, सरकार ने SHO को लाइन अटैच किया और कुछ देर पहले पत्रकार को जेल से रिहा किया गया