मधुवन
निकरे कैसे कहाँ चले तुम
कहाँ कहाँ भटकाओगे
कैसे कैसे पथिक मिलेगें
सब कैसे समझाओगे।।
जीवन के कड़वे सच को
कैसे उनसे कह पाओगे
पछी है पर कटे हुए हैं
कैसे बात उड़ा पाओगे।
उठते बादल मेघ गराजे
आशा बूंदें बनी कहाँ है
जितनी सागर की गहराई
तलघर की घरी कहाँ है।।
बयार बही है अभी अभी
आंगन में सम्यक डेरा है
मधुवन जैसी जीवन धारा
दिनकर तले सबेरा है।।