बघेली रचना लेखक और कवि दिनकर प्रसाद पाण्डेय
अरझिन
कतकेउ बेर अपने हित से अरझि गयेन।
लागथै गुप्प चुप्प रही, नहीं सझिआयेन।।
इया दुख न काटयि कटाय।।
न केहू से बटवयि भयेन।।
रही सही हिम्मत से सोहि जात।।
पयि जिंदगानी रस्ता बड़ी दूरि हयि।।
इया जिंदगी दुखन केर ठीहा आइ।
अब सोचीथे दिनकर क मोह न होत।।
जरूर पढ़ी आप सब धन्यवाद